निखिल- इस पूरे फैसले को आप किस रूप में देखते हैं ?
निखिल- सहमति बनाने की लिहाज से भी इस फैसले का स्वागत किया तो जा सकता है ?
जिलानी- असहमति को लेकर अपराध बोध कराया जाना ठीक नहीं है l बावजूद इसके मैंने तहे दिल से इस फैसले का स्वागत किया है की कम से कम 60 सालों से चल रहे इस मुक़दमे में आगे देखने का एक रास्ता प्रशस्त हो गया है l इस फैसले के अध्ययन और आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल बोर्ड की बैठक के बाद सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर किया जायेगा l चूँकि जजमेंट हाईकोर्ट का है और देश के क़ानून और संविधान के मुताबिक इस फैसले को आगे सुप्रीम कोर्ट में चैलेन्ज कर सकते है l ये न्याय की प्रक्रिया का एक अंग है l
निखिल- व्यवहारिकता और सामाजिकता की दृष्टि से इस फैसले में कहाँ परेशानी नज़र आती है ?
जिलानी- एक बार फिर मैं दुहराऊंगा की इस फैसले में आस्था और मान्यता को सबूत का एक सब्सटीच्युट मान लिया गया है l अगर ऐसा है तो इस आधार पर कोई भी किसी के भी धार्मिक स्थल पर दावा कर सकता है l ये केस मालिकाना हक निर्धारित करने को लेकर था और जमीन का बंटवारा कर दिया गया l इस देश के सेक्युलर मिजाज के लिहाज से इस जजमेंट से इत्तिफाक रखना वाकई मुश्किल है l
निखिल- राजनीतिक दलों और आम जनता की प्रतिक्रिया पर क्या कहेंगे?
जिलानी- देखिये आम पब्लिक का रेस्पोंस बहुत की मेच्योर था l आम मुसलमान इस फैसले पर तल्खी के बावजूद संयमित था l शान्ति और सौहार्द्र का माहौल बना रहे ये हम सब चाहते है l राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया में लोग हार जीत का सवाल नहीं बनाने की बात तो कर रहे थे पर बयान से मंशा साफ़ थी l कांग्रेस की प्रतिक्रिया बहुत साधारण सी थी l
निखिल- इस फैसले के बाद क्या किसी भी प्रकार का ध्रुवीकरण हो सकता है, बिहार में चुनाव भी है?
जिलानी- इस कानूनी मसले से जुड़ा रहा हूँ, व्यस्त रहा हूँ l ये सियासी सवाल है और पार्टियां इसका इस्तेमाल कर सकती है l पर जो माहौल है उसमें शायद ध्रुवीकरण हो सकता है l पत्रकार के तौर पर बिहार की बात आप बेहतर बता सकते है l
२. रज़ी अहमद, प्रसिद्द सामाजिक कार्यकर्त्ता, गांधी संग्रहालय, पटना:
निखिल- अयोध्या फैसले पर आपकी प्रतिक्रिया क्या होगी ?
रज़ी अहमद- फैसला ऐसे लगता है की जैसे कोर्ट ने सिर्फ एक रास्ता निकाला है l देखिये मसला तो मिल्कियत का था और कोर्ट ने उस भाग को सीधे तीन हिस्से में बाँट दिया l बंटवारे का ये मसला नहीं था मालिकाना हक का मसला था l ऐसे में तो यही लगता है की जो जुडीशियरी है वो भी कहीं न कहीं कटघरे में है l
निखिल- तो इसका मतलब इस फैसले को आप सवालों के घेरे में रखते हैं ?
रज़ी अहमद- बिलकुल सवाल उठेगा l पटना में भी जो कई वकील वगैरह हैं और क़ानून के जानकार हैं वो भी ये बात कह रहे हैं की कानूनी फैसला नहीं बल्कि पॉलिटिकल फैसला हुआ है l मुझे भी थोडा ऐसा लगता है फिर भी मैं इसे इस मसले के लिहाज़ से एक कदम बढ़ता हुआ देखता हूँ l मैं कोई लीगल आदमी नहीं हूँ और संविधान को सर्वोपरि मानता हूँ l
निखिल- आम जनता और राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया को आपने महसूस किया?
रज़ी अहमद- सिविल सोसाइटी पर इन सबका किसी भी प्रकार का दबाब नहीं चला है l पूरे देश में अमन- चैन रहा तो ये सिविल सोसाइटी की विजय हुई है, उसकी जितनी भी प्रशंसा किया जाए कम है l सिविल सोसाइटी को संविधान के अंतर्गत उसके हक- हकूक मिले और हिफाज़त रहे इतना ही तकाजा है l राजनीतिक दल वैल्यूज की बुनियाद पर नहीं जज्बाती मसले उभार कर तात्कालिक लाभ के लिए राजनीति करना चाहती है जो हमारे हिन्दुस्तान के आने वाले दिनों पर एक प्रश्न चिन्ह लगाना चाहती है l बी.जे.पी. वाले तो तो पहले से अयोध्या मसले को आस्था का प्रश्न बनाकर घूम रहे थे, आडवाणी साहब ने तो रथ यात्रा निकाली हुई थी l अब सांप्रदायिक पार्टियां फैसले को अपने मंदिर आन्दोलन के जीत के रूप में प्रचारित कर रहीं हैं l बी.जे.पी. को जानना चाहिए की हिन्दुस्तान कंधार नहीं है यहाँ एक अरब से ज्यादा लोग रहते हैं l यहाँ का समाज कास्मोपोलिटन सोसाइटी है यहाँ हिन्दू, मुसलमान, सिख, इसाई सभी धर्मों के लोग रहते हैं और बड़ी तादात उनलोगों की भी है जो भगवान में विश्वास भी नहीं करते हैं तो हमें सबका सम्मान करना सीखना होगा l
निखिल- कांग्रेस के बारे में भी कुछ कहेंगे, आप थोड़े तल्ख़ उधर से भी हैं?
रज़ी अहमद- बिहार में कांग्रेस जो असर्ट कर रही है उसपर एक बड़ी जिम्मेदारी थी l आमलोग को तो यही लगता है की केंद्र में कांग्रेस की सरकार है और अगर वो चाहे तो अयोध्या मसला और बेहतर तरीके से सुलझ सकता है l सही मायनों में इस मसले को उलझा कर रखने की एक बड़ी जिम्मेदारी राजनीतिक दलों की भी है l
निखिल- बिहार में चुनाव है तो क्या लगता है की इस संवेदनशील मसले का कुछ असर भी होगा ?
रज़ी अहमद- चुनाव में ..सीधे तौर पर स्वीकार न करें...पर लगता है की जरूर कुछ असर पड़ेगा l
३.विनय कंठ, जाने-माने शिक्षाविद, पटना विश्वविद्यालय
निखिल- अयोध्या फैसले पर आपकी प्रतिक्रिया क्या है ?
प्रो. कंठ- फैसला तो...इस पर दो तरह की प्रतिक्रिया होगी l पहली तो की कोई भी फैसला न्यायालय का जबतक सर्वोच्च न्यायालय से बदला नहीं जाता है वो अंतिम फैसला नहीं माना जाता है l तब तक इस फैसले को सभी को कोर्ट का फैसला समझ कर स्वीकार करना चाहिए और फिर जिसे ऐतराज हो वो आगे सुप्रीम कोर्ट में अपील करे l जहाँ एक जुडिसिअल सिस्टम है और एक संवैधानिक सरकार है ऐसे में किसी भी विवाद को जब कानून के पास ले जाते हैं तो कोर्ट के फैसले को सम्मान करना चाहिए और यहाँ भी सुप्रीम कोर्ट जाने का रास्ता है l
निखिल- और फिर दूसरी प्रतिक्रिया...कहीं ख़ुशी, कहीं गम जैसी तस्वीर भी लगती है क्या ?
प्रो. कंठ- मैं इसी बात पर आ रहा हूँ...इस फैसले को बाई एंड लार्ज पब्लिक ने भी स्वीकार किया है और इसको लेकर बहुत ज्यादा लोग अग्रेसिव हों ऐसा नहीं है और लोगो का रिएक्शन भी बहुत मेच्योर है, ये अप्रिशियेट करने योग्य है ..इस बात को नोट करते हुए जहाँ तक इस फैसले का सवाल है ऐसा लगता है की थोडा सा झुकाव इसका हिंदू कम्युनिटी की ओर है और बहुत सारी चीज़ इस फैसले में कही गई है वो अनावश्यक भी लगती है और प्रतीत होता है की कोर्ट ने ओवररीच किया है अपने जूरीडिक्शन को....डिविनिटी को डिफाइन करना कोर्ट के जूरीडिक्शन की बात तो है नहीं l
निखिल- मतलब आपका ऐतराज़ कोर्ट के फैसले के तरीके पर है ?
प्रो. कंठ- कानूनी फैसला आमतौर पर साक्ष्य और प्रमाण पर आधारित होता है पर मैं इस बात को भी मानता हूँ की न्याय की अपेक्षा उसके परे भी जा सकती है l इस बात के सन्दर्भ में ये कहना भी चाहूँगा की आस्था किसी इतने फैसले का आधार न बने, ये गलत होगा l अगर हिन्दुओ की आस्था है की वहां रामजन्मभूमि है तो मुसलमानों की आस्था भी है की वो बाबरी मस्जिद है, अब क्या कहेंगे आप l
निखिल- बिहार में चुनाव है इस फैसले का क्या असर पर पड़ सकता है ?
प्रो. कंठ- हमको नहीं लगता है की इस मसले को लेकर ध्रुवीकरण की गुंजाइश है l हाँ! सांप्रदायिक पार्टियां तो निश्चित ही चाहेंगी की हिन्दू मत उसके पक्ष में गोलबंद हों l इस मसले पर किसी भी पार्टी का हाथ बहुत साफ़ नहीं है और आम मुस्लिम समुदाय इस वक़्त फैसले को स्वीकार करने के बावजूद स्तब्ध है l मुसलमानों के पास किसी भी पार्टी के पक्ष में समर्थन बनाने की गुंजाइश नहीं बनती फिलहाल नहीं दिखती है और अल्पसंख्यक मत विभाजित रहेंगे और हो सकता है की बी.जे.पी. विरोधी पक्ष में जाए l मैं बहुत श्योर नहीं हूँ पर थोडा बहुत तो ध्रुवीकरण हो सकता है l
निखिल- इस पूरे अयोध्या फैसले पर आपकी प्रतिक्रिया क्या है ?
कुणाल- फैसला देश हित में है समाज हित में है और इससे बेहतर फैसला नहीं हो सकता था l ये मामला सिर्फ मालिकाना हक का मामला नहीं था और भी बहुत मुद्दे थे l लेकिन जब राष्ट्रपति के द्वारा सुप्रीम कोर्ट के पास भेजा गया था तो सुप्रीम कोर्ट ने इस विषय पर बाँध दिया था की मालिकाना हक जिसका होगा उसको अधिकार मिलेगा ! 26 अप्रैल, 2010 को भी मैंने कोर्ट में सुझाव दिया था की जहाँ रामलला विराजमान हैं वहां मंदिर बने और बगल में मस्जिद भी रहने दीजिये l सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था की जब दो भावनाओं के बीच कनफ्लिक्ट हो तो तो जो अधिक स्थाई महत्व की बात है उसपर ध्यान दिया जाना चाहिए l ये पूरा फैसला तो 15 ,000 पृष्ठों का है जिसमें और भी कई निर्णय हुए है और ये जो जमीन के बंटवारे की बात है l ये जो भूमि का विभाजन है वो जजमेंट का आधार नहीं है, ये डाइरेक्शन दिया गया है, सामाजिक सौहार्द्र का ख्याल रखते हुए l
निखिल- कोर्ट के आस्था और विश्वास पर आधारित फैसले के बारे में क्या कहेंगे ?
कुणाल- नहीं ऐसा नहीं है, जो मान्यताये और विश्वास बहुत लम्बे समय से चली आ रही है उनका भी महत्व कोर्ट में होता है और उसको ऐसा आधार विशेष परिस्थिति में माना जा सकता है, ऐसा कहा गया है फैसले में l
निखिल- इस आधार पर गलत परंपरा तो नहीं कायम होगी?
कुणाल- इसके लिए क़ानून बना है की 15 अगस्त, 1947 को जो धार्मिक संस्थाओं और स्थलों का स्वरुप और स्थिति है उसको नहीं बदला जा सकेगा l इसलिए ऐसी कोई आशंका नहीं है l
निखिल- इस फैसले पर पर कहीं ख़ुशी, कहीं गम जैसी स्थिति रही ?
कुणाल- देखिये किसी कानूनी मसले में फैसला किसी न किसी के पक्ष में होता है पर इसको हार- जीत के सन्दर्भ में नहीं देखना चाहिए l सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा खारिज हुआ तो थोडा वे मायूस होंगे l आगे भी अवसर है की इस पर सलाह- मशविरा कर इसे पूरे तौर पर सुलझा लेने के अवसर हैं और नहीं तो सुप्रीम कोर्ट में फिर फैसले की अपील की जा सकती है l
निखिल- अतीत में कई अवसर आये होंगे जब इस मसले को सुलझाया जा सकता था ?
कुणाल- ये तो सरकार के अधिग्रहण की भूमि है और सरकार इसमें प्रयास करती है तो मसला सुलझाने का मार्ग प्रशस्त हो सकता है l हाँ अतीत में कई मौके आये जब इसे सुलझाया जा सकता था, अब जो बात बीत गई उसे दुहराने का कोई फायदा नहीं है l पर जब से मस्जिद ध्वस्त कर डी गयी सुलह की सारी संभावनाए समाप्त हो गयी l
निखिल- बिहार में चुनाव है तो इस फैसले का कुछ राजनीतिक असर होगा ?
कुणाल- देखिये मैं राजनीतिक विषयों पर नहीं बोलता हूँ, ये प्रश्न किसी राजनीतिक विश्लेषक के लिए बेहतर होगा l लेकिन आप पूछ रहे हैं तो बता दूं की अगर कोई राजनीतिक गोलबंदी होगो या इससे राजनीति प्रभावित होगी...ये भविष्य बताएगा l लेकिन मैं बहुत इस तरह के राजनीतिक सवाल के लिए तैयार नहीं हूँ पर ध्रुवीकरण हो भी सकता है l पर साफ़ कर दूं राजनीति मेरा विषय नहीं है l
(नोट- 'इंडिया न्यूज़' साप्ताहिक के १५ अक्तूबर, २०१० अंक से साभार )
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