30 सितम्बर को अयोध्या फैसले के दिन जो सन्नाटा पसरा था वो जाहिर है की लोगों के जेहन में एक अज्ञात भय की आशंका के कारण थी l बड़ा सवाल था की फैसला क्या होगा और आवाम यानी हिन्दू- मुसलमान इसे किस रूप में स्वीकार करेंगे l रामजन्म भूमि आन्दोलन, लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा, बाबरी मस्जिद विध्वंस व उसके बाद देश में उत्पन्न हालात और फिर उसके करीब एक दशक बाद गुजरात के दंगों की तस्वीरें हम में से अनेकों लोगों की आँखों के आगे तैरने लगे थे l कॉमनवेल्थ गेम्स और बिहार विधान सभा चुनाव के मद्देनज़र पुलिस, प्रशासन, नेता और जनता सब सशंकित थे l किसी भी स्थिति से निपटने के लिए पुलिस बल देश के सभी संवेदनशील और ख़ास जगहों पर तैनात थे l बसें, ट्रेन, हवाई यातायात पर भी इसका खासा असर देखने को मिला l ये सारी परिस्थितियाँ कुल मिलाकर यही इंगित कर रहीं थी की जैसे इस सेक्युलर देश के आवाम के जज्बात की अग्नि परीक्षा ली जा रही हो l शुक्र है की फैसले के बाद अज्ञात भय के अंदेशे से पसरा सन्नाटा फिर से चहल -पहल में तब्दील हो गयी l करीब दो महीने पहले से इस अवसर के लिए तैयार मिडिया ने भी राहत की सांस ली l हाँ ये बात और है की फैसले के बाद मिडिया सेंटर और अन्य कई जगहों पर पत्रकारों को गले मिलते, बधाई देते और ख़ुशी मानते देखा गया l ये बात यहाँ लिखना इसलिए भी जरूरी है की मिडिया समाज एक अलग द्वीप नहीं बल्कि इसी सामाजिक- राजनीतिक परिवेश का एक अंग है जो इस फैसले के बाद मिडिया समूह की प्रतिक्रिया से साफ़ झलक रहा था l अधिकतर टी.वी. चैनलों ने जो ब्रेकिंग न्यूज़ दिखाए उसमें तीन खबर ख़ास थी l पहला, विवादित स्थल रामजन्मभूमि; दूसरा, रामलला वही विराजमान रहेंगे और तीसरा, सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा खारिज l इस पूरे संवेदनशील मामले के प्रति देश के कई महत्ववपूर्ण टी.वी. समूह के पत्रकारों की भावना का साफ़ पता लगता है l
जैसे ही फैसला आया वकील के रूप में भाजपा के राष्ट्रीय नेता रविशंकर प्रसाद ने बाहर आकर मिडिया को फैसले का मजमून तो बताया ही झट से अपना राजनीतिक पैंतरा बदलते हुए कहा की इस मामले में न तो एक पक्ष के वकील के रूप में और न ही भाजपा के नेता के रूप में पर देश के एक आम नागरिक के रूप में वो देश के मुस्लिम भाइयों से अपील करते है की अब जबकि कोर्ट ने भी मान लिया है की वो स्थान राम जन्म भूमि है और रामलला की मूर्ति वहीँ विराजमान रहेगी तो राममंदिर बनाने में सहयोग करें l तो उधर दिल्ली में आर.एस.एस.प्रमुख मोहन भागवत ने कहा की कोर्ट के फैसले के बाद राममंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो गया है पर एक तिहाई जमीन मुसलमानों को दिए जाने के मामले पर संतों की उच्चाधिकार समिति फैसला करेगी l भागवत ने मंदिर को राष्ट्रीय मूल्यों का प्रतीक बताते हुए राममंदिर के निर्माण में कटुता भुलाकर जुट जाने का आह्वान किया l प्रवीण तोगड़िया ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा की देश के सौ करोड़ हिंदुओं की श्रद्धा का सम्मान हुआ है। वहीँ नरेंद्र मोदी ने इसे हार- जीत का विषय न बनाने की बात करते हुए खुशी जाहिर किया की इस जजमेंट से भव्य राम मंदिर बनाने का रास्ता प्रशस्त हुआ है। एक हिंदी साइट पर विश्व हिंदू परिषद के एक अन्य नेता गिरिराज किशोर ने कहा है कि अब मुसलमानों को गुड-विल का परिचय देते हुए मथुरा और काशी को भी हिंदुओं को सौंप देना चाहिए। अब भाजपा भले ही रविशंकर के बयान के बाद संयम बरत रही हो रही सही कसर उसके सहयोगी हिंदूवादी संगठनों के नेता ने पूरा कर दिया l सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील जफरयाब जिलानी की इस फैसले पर तल्खी जरूर झलकी, बावजूद इसका स्वागत किया और सुप्रीम कोर्ट में जाने की बात कही l
इस पूरे पृष्टभूमि में सबने कहा तो यही की इस फैसले को हार और जीत की भावना से नहीं देखा जाए पर चेहरे के भाव सच बयान कर गए l आर.एस.एस. और भाजपा के नेताओ के चेहरे की ख़ुशी साफ़ झलक रही थी l वे कह रहे थे की ये हार जीत का सवाल नहीं है पर जीत का भाव लिए खुल कर न सही अंदरूनी तौर पर जश्न तो जरूर मना रहे थे l उन्हें अयोध्या की विवादित जमीन मुसलमानों के साथ बाँटने का दुःख तो था पर ख़ुशी इस बात की थी की कोर्ट ने एक तौर पर उस विवादित स्थल को राम जन्मभूमि मानते हुए रामलला की मूर्ति यथावत बने रहने का आदेश दिया था l खैर हिन्दुत्ववादियों ने संयम तो रखा पर उनके जबान से निकले शब्द कहीं न कहीं दुसरे पक्ष को चुभ रहे थे l दाद देनी होगी उन तमाम मुसलमानों को इस बड़े संवेदनशील मामले पर स्तब्धता और हैरानी जाहिर किया पर कोई हिंसक या उग्र प्रतिक्रिया नहीं हुई और इसकी जितनी शाबाशी हिंदुस्तान के तमाम लोगों को दिया जाय वो कम है l
सवाल ये भी है की भाजपा की इतनी सधी हुयी प्रतिक्रिया के पीछे क्या कारण था l साफ़ है की देश की वर्तमान स्थिति में भाजपा को एक बड़े मुद्दे की तलाश जरूर है जो उसे कांग्रेस के मुकाबले खड़ा कर सके l भाजपा की एक असफलता तो वाजपेयी और आडवाणी के बाद के काल में एक राष्ट्रीय छवि का नेता ढूढ़ पाने की है जो पार्टी को कांग्रेस के युवराज और भावी प्रधानमंत्री राहुल गाँधी के मुकाबले खड़ा कर नेतृत्व कर सके l भाजपा की दूसरी असफलता महंगाई, परमाणु बिल सहित अन्य तमाम मुद्दों पर सांसद के भीतर और बाहर कांग्रेस को घेर पाने की है, यूँ कहें की ये भाजपा की एक सफल विपक्ष के तौर पर बड़ी असफलता है l भाजपा के नेता इन दोनों मामलों में असफलता की बात सुनते ही महंगाई के खिलाफ पिछले दिनों हुए राष्ट्रीय बंद का हवाला देते हैं पर ये भूल जाते हैं की उस बंद की सफलता अकेले भाजपा के बूते के बाहर की बात थी क्योंकि वामदल, समाजवादी दल, आन्ध्र की टी.डी.पी., अन्नाद्रमुक और देश भर के तमाम सामाजिक- राजनीतिक संगठन सभी इसमें शामिल थे l
जाहिर है की ऐसी हालात में बिहार के चुनाव में भाजपा का जे.डी.(यू.) से गठबंधन उसकी चुप्पी का एक बड़ा कारण है l बी.जे.पी. के एक नेता नाम न छापने की शर्त पर कहते है की फ़र्ज़ कीजिये की ये चुनाव न होता या फिर चुनावी गठबंधन जे.डी.(यू.) से न होता तो इतने बड़े मुद्दे और अवसर को कोई ऐसे ही खाली हाथ क्यों जाने देता l वाकई इस लिहाज से भाजपा, वी.एच.पी., आर.एस.एस., बजरंग दल और तमाम हिंदूवादी संगठनों की चुप्पी कोई छोटी- मोटी बात नहीं बल्कि बड़े मायने हैl केंद्र में सत्ता से बाहर भाजपा को पता है की 2014 तक उसके लिए राष्ट्रीय सत्ता में आने का कोई जगह नहीं है और फिर उस चुनाव में भी राहुल नाम की युवा आँधी से जूझना है जिसके लिए पार्टी अभी अपना एक नेता ढूढ़ रही है जिसके पीछे सभी एकजुट हो कर मैदान मार सकें l इस कारण पार्टी राज्यों में सत्ता पर जैसे तैसे सब कुछ सहते हुए काबिज़ होने का कोई अवसर नहीं छोड़ना चाहती है l अन्यथा भाजपा के लिए झारखण्ड में सरकार बनाना एक गर्व का विषय न होता l पार्टी ने पिछले दिनों नीतीश कुमार के आगे चारों घुटने टेक दिए है l नरेन्द्र मोदी की तस्वीर के मामले में फजीहत की ये पराकाष्ठा की राष्ट्रीय बैठक में पटना आये भाजपा नेताओ को नीतीश कुमार ने भोज का आमंत्रण दे कर ठेंगा दिखा दिया और पूरी पार्टी मुँह छुपाते फिरती रही l बाढ़ राहत का पांच करोड़ रूपया लौटाया l भाजपा को इस शर्त पर राज़ी किया की पार्टी के उग्र हिंदूवादी चेहरे नरेन्द्र मोदी और वरुण गाँधी को बिहार प्रचार में नहीं आने दिया जायेगा l अब इतना कुछ सह कर कैसे भाजपा बिहार में जे.डी.(यू.)से अलग राजनीति की सोच सकती है, कम से कम झारखण्ड के बाद एक और राज्य में सरकार में वापसी का दावा जो अभी बना हुआ है और फिर बिहार में पार्टी का अकेले वजूद नीतीश कुमार के बाहर ढूढना संभव नहीं दिखता है l
बिहार में चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और इस फैसले को लेकर सभी दल काफी सशंकित थे l बताया जाता है की सभी दलों ने अपने नेताओं को किसी भी प्रकार की बयानबाजी से बचने की हिदायत दे रखी थी l ये बातें उन दलों के लिए कुछ ज्यादा लागू की गई थी जो वैचारिक रूप से दो विपरीत ध्रुव पर होते हुए भी एक गठबंधन में चुनाव लड़ने जा रही थीं यानी भाजपा और जे.डी.(यू.) के लिए ये ज्यादा जरूरी था l धर्मनिरपेक्षता के पंद्रह वर्षों तक झंडा बुलंद कर चुके लालू यादव के लिए तो ये अवसर की बात थी क्योंकि अपने माय समीकरण के ध्वस्त होने और कांग्रेस की ओर टकटकी लगाये रहने के बावजूद दरकिनार कर दिए जाने के बाद शायद इस फैसले से हुए कुछ भी वोट शिफ्टिंग का लाभ आर.जे.डी. को हो सकता है l पर लालू यादव को पता है की पिछले पंद्रह वर्षो के विकास विरोधी नीति का भूत उनके पीछे पड़ा है और नीतीश कुमार भाजपा के साथ होते हुए भी उनपर 2005 के विधानसभा चुनाव के बाद 2009 के लोकसभा चुनाव में भी भारी पड़े l ऐसे में कांग्रेस पहली बार अपने बूते और राहुल- सोनिया करिश्में के दम पर बिहार विधान सभा चुनाव मैदान में उतरने जा रही है तो उसका इस पूरे मामले पर सतर्कता लाजमी था l इस फैसले के कुछ दिनों पहले से नेताओं ने चुप्पी साध ली थी l फैसले के आने के पहले गृहमंत्री चिदंबरम ने राष्ट्र से शांति की अपील की थी तो फैसले के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने साफ़ किया की इस फैसले को गहराई से देखा जाना चाहिए और सुप्रीम कोर्ट में यह मामला जाने तक यथास्थिति बनाये रखी जाएगी l इस अवसर पर उन्होंने शांति व भाईचारा बनाये रखने और विघटनकारी तत्वों से सावधान रहने को भी कहा l इस पूरी कवायद से समझा जा सकता है की इस फैसले का सन्दर्भ कितना महत्वपूर्ण और गंभीर था l नीतीश कुमार ने कहा की इस फैसले को न्यायिक प्रक्रिया के हिस्से के रूप में देखा जाना चाहिए और कोई भी पार्टी हो उसे निर्णय को राजनीतिक एजेंडा नहीं बनाना चाहिए l नीतीश कुमार के इस बयान में जहाँ अपनी सहयोगी भाजपा के लिए एक अप्रत्यक्ष चेतावनी थी वहीँ आर.जे.डी. और कांग्रेस के लिए सन्देश था l नीतीश कुमार को पता है की अगर किसी भी तरह का ध्रुवीकरण होगा तो उसमे उन्हें ही खामियाजा भुगतना पड़ेगा l लालू यादव ने काफी सोच समझ कर कहा की इस फैसले को पूरा पढने के बाद ही अपनी प्रतिक्रिया देंगे l उन्होंने इस फैसले का बेजा इस्तेमाल करने वाले और सामाजिक सदभाव बिगाड़ने वाली पार्टियों पर नज़र रखने की अपील लोगों से की जाहिर है उनका इशारा हिन्दुवादी संगठनों की ओर था l किसी भी दल के नेता इस बारे में खुलकर बात नहीं करते है की इस फैसले का चुनाव पर क्या असर पड़ेगा l लेकिन ये फैसला अब जिस तरह से लोगों के बहस के एक मुख्य बिन्दु बन गया है और ख़ास कर मुस्लिम समुदाय के लिए तो ऐसा निश्चित तौर पर लगता है की इसके बिहार में चुनावी प्रभाव पड़ेंगे l
कोर्ट ने फैसले में मुसलामानों को जमीन का हिस्सेदार बनाया है तो हिन्दू पक्षकार की भौहें तनी है और रामजन्मभूमि न्यास और हिन्दू महासभा दोनों सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में है l सुन्नी वक्फ बोर्ड और उससे जुड़े लोगो ने भी इस फैसले का स्वागत किया क्योंकि अब इस मामले में आगे बढ़ने की एक गुंजाईश भी बनी है l पर उनका ऐतराज कोर्ट के इस बात से है की क़ानून का फैसला एविडेंस यानी तथ्य आधारित होना चाहिए न की आस्था, मान्यता और विश्वास के आधार पर l तो जाहिर है सुन्नी वक्फ बोर्ड भी सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी कर रहा है l कांग्रेस के एक मुस्लिम नेता नाम ने छापने की शर्त पर कहते है की कोर्ट के फैसले का हम सब स्वागत भले ही करें मामला सुप्रीम कोर्ट में जाना तय है l पूरा फैसला कुल 15,000 पन्नो का है और इसके अध्ययन में वक्त लगेगा पर जो भी सार जानने को मिला है उससे लगता है की फैसला हिन्दू समुदाय के पक्ष में हुआ है l वे याद दिलाते है की भाजपा के नेताओ ने बाबरी मस्जिद विध्वंस के वक़्त देश की संसद और राष्ट्रीय एकता परिषद् को विश्वास दिलाया था और जब मस्जिद तोड़ दिया तो उस वक़्त ये बात हिंदूवादी नेताओ के तरफ से सुनने को मिले थे की आस्था के सवाल पर हम संविधान और क़ानून को बड़ा नहीं मानते हैं l
पिछले दो दशकों में देश की राजनीति एक लम्बी दूरी तय कर चुकी है अब न तो पंडितों की हुंकार और न ही मौलानाओ के फतवे लोगों को असर करते हैं l देश में शांति और सदभाव कायम रहा तो ये किसी सरकार की सतर्कता भले हो बजाय इसके आवाम की अपनी जरुरत से प्रेरित थी l लोग वर्तमान में भले ही जीतें हो पर इतिहास से सीख भी रहे है और जब जख्म अब भरने को आये है तो कोई कुरेदना नहीं चाहता है l बिहार में चुनाव है तो इस फैसले का असर निश्चित होगा l लोगों के सामने बिहार के विकास का सवाल है तो सामाजिक और वैचारिक वजूद बचाने का सवाल भी है l हक- हकूक दिलाने के नाम सपने दिखाकर वोट लेने वालों को लोग ठेंगा भी दिखने को तैयार है l पिछले बीस सालों में बिहार के लोगो ने क्षेत्रीय पार्टियों को खासा तरजीह दिया है जिसका परिणाम था की कांग्रेस पिछले विधान सभा चुनावों में आर.जे.डी. की तो वहीँ बी.जे.पी. अब भी जे.डी.(यू.) की जूनियर पार्टनर बनी हुई है l कांग्रेस इस बार अकेले बूते सभी सीटों पर चुनाव लड़ रही है l बौद्धिक आवरण में आमतौर पर किसी के लिए चुनावी गोलबंदी का असर देखना या स्वीकार करना मुश्किल भले हो पर हकीकत ये है की भूमि सुधार मसले पर सरकार से नाराज़ चल रहा सवर्णों का एक हिंदूवादी तबका भाजपा गठबंधन के कारण नीतीश कुमार की ओर मुखातिब हो सकता है तो मुसलमान आर.जे.डी. या कांग्रेस के पक्ष में गोलबंद हो सकते है l पर कोई भी अपने पक्ष में किसी ख़ास मत को पाले में लेने का दावा नहीं कर सकता है l फिलहाल फैसले का मजमून सामने आया है l पूरे फैसले के अध्ययन के बाद कई महत्वपूर्ण बातें सामने आएँगी, फिर बहस और सवाल-जबाब भी होंगे और जाहिर है बिहार का चुनावी तापमान तब तक कुछ और गरम हो चुका होगा l
(नोट- 'इंडिया न्यूज़' साप्ताहिक के अक्तूबर, २०१० अंक से साभार)
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